वक़्फ़ संशोधन विधेयक 2025 के पारित होते ही देशभर में बहस छिड़ गई है। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड और कई विपक्षी दलों ने इसे समुदाय के अधिकारों पर हमला बताते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख करने की बात कही है। कई लोगों को डर है कि यह कानून उनकी धार्मिक संपत्तियों को प्रभावित कर सकता है। वहीं सरकार का कहना है कि यह बदलाव पारदर्शिता और भ्रष्टाचार रोकने के लिए ज़रूरी है। अब निगाहें इस बात पर टिकी हैं कि क्या न्यायपालिका इस मामले में हस्तक्षेप करेगी और क्या यह कानून अदालत की कसौटी पर खरा उतर पाएगा।
वक़्फ़ बोर्ड एक ऐसी संस्था है जो मुसलमानों द्वारा दान की गई धार्मिक, शैक्षणिक या सामाजिक संपत्तियों का प्रबंधन करती है। ये संपत्तियाँ मस्जिद, कब्रिस्तान, मदरसे या समाजसेवा से जुड़ी होती हैं, जिन्हें “वक़्फ़” कहा जाता है। इनका उद्देश्य समाज की भलाई और जरूरतमंदों की मदद करना होता है। लेकिन समय के साथ कई शिकायतें सामने आईं — जैसे संपत्तियों पर अवैध कब्ज़ा, पारदर्शिता की कमी और भ्रष्टाचार। इन्हीं समस्याओं को सुधारने और वक़्फ़ संपत्तियों के बेहतर प्रबंधन के लिए सरकार ने वक़्फ़ संशोधन विधेयक पेश किया। यह बिल न केवल इन संपत्तियों को सुरक्षित रखने की दिशा में एक कदम है, बल्कि यह समाज के उन वर्गों के लिए भी राहत की उम्मीद लेकर आया है जो इनसे लाभान्वित होते हैं।
वक़्फ़ संशोधन विधेयक 2025 हाल ही में संसद के दोनों सदनों से पास हुआ। लोकसभा में यह बिल 2 अप्रैल को पेश किया गया, जहां इसके पक्ष में 288 और विरोध में 232 वोट पड़े। अगले ही दिन, यानी 3 अप्रैल को यह राज्यसभा में लाया गया, जहां 128 सांसदों ने इसका समर्थन किया और 95 ने विरोध। विधेयक के समर्थन में भारतीय जनता पार्टी पूरी मजबूती से खड़ी रही, जबकि कुछ सहयोगी दल जैसे टीडीपी, जद (यू), और लोक जनशक्ति पार्टी ने शुरुआत में सवाल उठाए लेकिन बाद में संशोधनों के बाद समर्थन दिया। वहीं दूसरी ओर, विपक्षी दलों ने इसे संविधान विरोधी और मुस्लिम समाज के अधिकारों के खिलाफ बताया। कांग्रेस ने इसे “सीधा संवैधानिक हमला” बताया तो समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव ने कहा कि यह विधेयक समाज को बांटने वाला है। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने तो विधेयक की प्रति तक फाड़ दी, यह कहते हुए कि यह मुस्लिमों की धार्मिक संपत्तियों पर सीधा हमला है। इस विधेयक का मकसद सरकार के अनुसार पारदर्शिता लाना और वक़्फ़ संपत्तियों में हो रहे भ्रष्टाचार को रोकना है। गृह मंत्री अमित शाह ने संसद में कहा कि यह विधेयक किसी के अधिकार नहीं छीनता बल्कि उसे सुरक्षित करता है। अब यह विधेयक राष्ट्रपति की मंजूरी के इंतज़ार में है। संसद द्वारा पारित विधेयकों को राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है, जहां वे विधेयक की समीक्षा करते हैं और फिर अपनी स्वीकृति प्रदान करते हैं। यह प्रक्रिया कुछ दिनों से लेकर कुछ सप्ताह तक चल सकती है।