उत्तराखंड की हरी-भरी वादियाँ और घने जंगल इस राज्य की सबसे बड़ी पहचान हैं। लेकिन गर्मियों के मौसम में जंगल की आग (Forest Fire) एक गंभीर समस्या बन जाती है। वर्ष 2025 में अब तक कई जिलों में सैकड़ों आग की घटनाएं सामने आ चुकी हैं। सवाल यह है कि क्या हम इन आग की घटनाओं को रोक सकते हैं? इसका जवाब है — हाँ, अगर समय पर सही कदम उठाए जाएं।
उत्तराखंड के जंगलों में बड़े पैमाने पर चीड़ के पेड़ हैं, जिनकी सूखी पत्तियां (पाइन नीडल्स) बहुत जल्दी आग पकड़ लेती हैं। कुछ अन्य कारण भी इस खतरे को बढ़ाते हैं:
- बढ़ता हुआ तापमान और जलवायु परिवर्तन
- जंगलों के पास कचरा जलाना या फेंकना
- पर्यटकों की लापरवाही
- पुराने फायरलाइन का अभाव या देखरेख न होना
ब्रिटिश काल में बनाए गए फायरलाइन को दोबारा सक्रिय किया जा रहा है।
- 400 किलोमीटर से अधिक पुराने फायरलाइन की सफाई की जा रही है।
- गर्मियों के दौरान नियमित निगरानी बढ़ाने की आवश्यकता है।
स्थानीय लोग, महिला समूह और युवा संगठन मिलकर आग से बचाव कर सकते हैं।
- गांवों में जागरूकता अभियान चलाए जा सकते हैं।
- चीड़ की पत्तियों को इकट्ठा करने के लिए सरकार ₹10 प्रति किलो दे रही है।
- मोबाइल ऐप्स और GPS अलर्ट सिस्टम से तुरंत आग की जानकारी मिल सकती है।
- सेटेलाइट इमेज और ड्रोन की मदद से दूरदराज के इलाकों की निगरानी की जा सकती है।
- जंगल के आसपास धूम्रपान ना करें और जलती हुई चीजें न फेंकें।
- कैम्प फायर बिना अनुमति के न करें।
- आग लगने की सूचना तुरंत वन विभाग को दें।
हर एक व्यक्ति की जागरूकता से हम अपने जंगलों को बचा सकते हैं।
उत्तराखंड के जंगलों को बचाना केवल सरकार की जिम्मेदारी नहीं है। यह हम सभी का कर्तव्य है। परंपरागत उपाय, आधुनिक तकनीक, और जनसहभागिता से हम जंगल की आग की घटनाओं को कम कर सकते हैं और अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए हरियाली को सुरक्षित रख सकते हैं।